जब तक हम समाज को खुली नजर से देखने का नजरिया नहीं अपनाते हैं, तब तक हमें सब कुछ बढ़िया ही दिखाई देता है। हम अपने कामों में मशगुल रहने वाले दो वक्त का बढ़िया खाने को और पहनने को तो आसानी से मिल ही जाता है तो उससे अधिक और क्या ???
पर उससे भी अधिक है आप के ही आस-पास ऐसे लोग हैं जिनके पास घर नही। जो गरीब है,
कभी जाइए रात को अपने ही शहर का मुआयना कीजिये फिर देखिये हमारे ही बरक्स एक और दुनियां खड़ी है। जहाँ गरीबी है। बेरोजगारी है। भुखमरी है। लाचारी है...
जिनके पास पहनने के लिए कपडे नही है। एक वक्त का खाने के लिए कई-कई बार सोचना पड़ता है।
naresh gautam
nareshgautam0071@gmail.com
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