Monday 18 June 2018

#मेलघाट_की_इन_आदिवासी_महिलाओं_के_चेहरे_की_आखिरी_मुस्कान_को_महसूस_कीजिए...


ये दोनों महिलाएं महाराष्ट्र के अमरावती जिले के टाइगर रिजर्व क्षेत्र में आने वाले एक गांव की हैं। गांव का नाम पीली है। गांव मुल्क की आजादी के काफी पहले बसा है। गांव का नाम पीली कैसे पड़ा, अब लोकस्मृतियों से यह बात पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है। दोनों महिलाएं कोरकू नामक जनजाति से आती हैं। पीली गांव सहित पूरे मेलघाट में इस जनजाति के लोगों की ही बहुलता है। मेलघाट के अध्ययन के क्रम में जब हमारी टीम- Mukesh KumarNaresh GautamChaitali S GPannalal DhurveVijay Karan Paaswan और रामलाल उइके उस गांव के प्रवेश द्वार पर महुए के पेड़ के नीचे सुस्ता रहे थे, उसी वक्त ये दोनों महिलाएं बस से उतरीं और गांव की तरफ जाने लगीं। उसी क्रम में हमारी टीम ने उनसे ढेर सारी बातें कीं। उनके खट्टे-मीठे अनुभवों को साझा किया।
जब उनसे यह सवाल पूछा गया कि वे कहां से आ रही हैं? तो उन्होंने अत्यंत ही सरलता से जवाब दिया कि हम पैसा निकालने बैंक गए हुए थे! अब सोचिये देश-दुनिया में आदिवासियों के अलावा कोई दूसरा एकदम अजनबी लोगों से इस किस्म की जानकारी शेयर कर सकता है क्या?? इतना ही नहीं उन्होंने बैंक से कितनी राशि निकाली यह जानकारी देने में भी कोई हिचक नहीं दिखाई, स्वतः ही बता दिया।
आदिवासियों के इसी भोलेपन की वजह से आज उनसे उनका जंगल, उनकी जीविका, उनकी संस्कृति, उनका घर-बार सब कुछ छिना जा रहा है। पीली गांव जैसे मेलघाट के दर्जन भर से ज्यादा गांव पिछले कुछ वर्षों में उजाड़े जा चुके हैं और आदिवासियों को जंगल, जीविका और संस्कृति आदि से पूरी तरह विस्थापित कर दिया गया है। पीली गांव समेत डेढ़ दर्जन से अधिक गांवों को दूसरे फेज में उजाड़ने की पूरी साजिश रची जा चुकी है। कहीं विकास का तर्क गढ़ते हुए तो कहीं जंगल और पर्यावरण की सुरक्षा की आड़ लेकर! लेकिन अहम सवाल तो यह है कि इस विकास में आदिवासियों का क्या स्थान है? दूसरा प्रश्न यह भी है कि क्या सचमुच जंगल-प्रकृति-पर्यावरण को आदिवासियों से खतरा है?? इन दोनों प्रश्नों का ईमानदारी पूर्वक जवाब न तो किसी सत्ता के पास है और न ही विकास और पर्यावरण के फर्जी पैरोकारों के पास ही है। इनके विकास और पर्यावरण संरक्षण का रास्ता आदिवासियों को कब्रगाह में दफन करने के ही रास्ते गुजरता है।
ऐसे लाखों आदिवासियों के चेहरे पर जो मुस्कान बिखरी हुई है, उसे छिन लेने पर अमादा सत्ता और उसके प्रशासन को लानत है। न्याय, लोकतंत्र, प्रकृति-पर्यावरण, जंगल-जानवर से प्यार करने वाले हर नागरिक को आदिवासियों पर जारी बर्बर हमले के खिलाफ आदिवासियों की मुस्कान कायम रखने के लिए उठ खड़ा होना चाहिए। क्योंकि जंगल-जानवर, प्रकृति-पर्यावरण की रौनक के लिए आदिवासियों के चेहरे की मुस्कान जरूरी है। आदिवासियों की निर्दोष मुस्कान को छिनकर किया गया हर विकास वास्तव में विनाश ही है।
तस्वीरें- नरेश गौतम ..

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