नाम है उत्तम सिंह चित्तौडिया
पैदा होने के साथ ही पिता के खानदानी व्यवसाय में सहयोग करते-करते वह खुद कब उस व्यवसाय से जुड़ गए उन्हें पता ही नहीं चला। काफी उम्र तक "खानदानी दवाखाने" का काम किया। कई शहर कई प्रदेश में घूमने और अपने व्यवसाय को चलाने के दौरान ही एक दिन वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ गए। जहाँ एक घटना घटी। हुआ कुछ यूँ कि पास के किसी गाँव में एक चोरी हुई जिसमें चोरों ने एक महिला का कत्ल कर दिया। पुलिस ने सबसे पहले डेरा डाले उन लोगों को पकड़ा जो घुमंतू थे। सारे डेरे वाले दहशत में थे बल्कि मैं भी दहशत में आ गया कि कहीं उसके घर वाले हम लोगों को ही न कह दे। क्योंकि लोगों कि बहुत पहले से मानसिकता बनी हुई है कि घुमंतू समुदाय के लोग चोरी करते हैं कत्ल करने तक में जरा सा नहीं हिचकते। आज भी हमारे समाज को इसी नजर से देखा जाता है। सरकार के लोगों द्वारा भी हमेशा हम लोगों को नकारा ही गया है। बस वही घटना थी जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। हमें तो ठीक से यह भी नहीं पता होता कि हम पैदा कहाँ हुये थे। यही सब बातें रही जिन्होंने मुझे अपने समाज अपने परिवार को बैठाने (स्थाई करने)के लिए प्रोत्साहित किया। आज मेरे समाज के 200 से अधिक परिवार स्थायी अपने घरों में रह रहे हैं। अब अपने बच्चों को पढ़ने से लेकर अन्य कामों के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।
वर्धा मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर आर्वी में यह प्रयोग संभव हुआ है। उत्तम सिंह बताते हैं कि 30 साल पहले मैं यहाँ खुद रहने आया। और आज 200 से अधिक परिवारों को रोजगार के साथ स्थायी घर देने का प्रयास कर चुका हूँ । मेरे कड़े परिश्रम और मेहनत का ही नतीजा था कि आज हमारे समाज के बच्चे अपने पुश्तैनी काम को छोड़ कर मुख्य धारा के समाज में आ रहे हैं। अब वह वकालत, इंजीनियरिंग और डॉक्टरी जैसे पेशे में अपनी सहभागिता कर रहे हैं। जिसे हमारे समाज ने कभी सोचा भी नहीं था।
उत्तम नगर अर्वी, वर्धा
nareshgautamnareshgautam0071@gmail.com
Photo-Chaitali S G
No comments:
Post a Comment