Monday 18 June 2018

ठग विद्या का खेल...



ये बच्चे कोरकू और गोँड आदिवासी हैं... यह जो कला इनके पास है वह सब बच्चों के पास नहीं होती। इसी कला को सीखने के लिए शहरी बच्चों को हजारों बल्कि कहीं-कहीं लाखो रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं... लेकिन इनके पास और इनके जैसे तमाम बच्चों को (जो ग्रामीण परिवेश से हैं )यह ज्ञान अपने आप ही इन्हें मिल जाता है। यह बच्चे फर्राते दार अंग्रेजी तो नहीं बोलते लेकिन जन्मजात दो से तीन भाषाओं के ज्ञानी होते हैं। ये बच्चे भी हिन्दी, मराठी और उनकी अपनी भाषा को समझने, बात करने में परिपूर्ण हैं। इन्हें यह भी मालूम होता है कि ऋक्ष (भालू) के आने पर क्या करना होता है और कैसे उसे डराना के भगाना है। मराना नहीं! इन्हें यह भी मालूम होता है कि धरती से कैसे अन्न उगाते हैं। और कैसे पहाड़ों नदियों से दोस्ती करनी है। यह चतुर और धूर्त नहीं होते इसीलिए हर बार ठगे जाते हैं । ठग विद्या का खेल लगातार उनके साथ विकास और विस्थापन के नाम पर खेला जाता रहा हैं । जो आज तक जारी है... 
क्या विस्थापन में सरकार उनके साथी दोस्त रहे नदी, तालाबों, पेड़ों, पहाड़ों को भी उनके साथ विस्थापित कर सकती है? यदि कर सकती है तो यह विस्थापन उनके विकास का हिस्सा होगा... नहीं तो उन्हें उनके ज्ञान, परंपरा, संस्कृति आदि से काटने की साजिश होगी...
नरेश गौतम 

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