Monday 18 June 2018

हमारी जड़ें...


जहाँ आज लोग अपनी जड़ों अपनी माटी से जुड़ने के लिए देश दुनियाँ के तमाम कोनों से वापस आना चाहते हैं। उसके लिए वह कोई भी कीमत अदा करने के लिए तैयार हैं। वहीं मेलघाट के आदिवासी अगर अपनी रोजी-रोटी के लिए बाहर चले जाते हैं। तो क्या सरकार के नुमाइन्दे उनकी जड़े ही काट देंगे? लेकिन जड़े काटने का षड्यंत्र बरबस जारी है... वहाँ के अधिकारियों का कहना है कि टाइगर का सबसे अधिक मूवमेंट इन्हीं जगहों पर है। और ब्रीडिंग के लिए उपयुक्त वहीं सारे गाँव के आसपास का एरिया भी... बाकी जगह टाइगर अच्छी ब्रीडिंग नहीं कर पा रहे। इस बात को दूसरे तरीके से देखा जाए तो वन्यजीव भी इंसान के आसपास ही रहना पसंद करते हैं न कि कहीं अलग और दूसरी दुनियाँ में। यदि टाइगर या अन्य वन जीवों के लिए आदिवासी ख़तरा होते तो कब का वह अपनी जगह छोड़ चुके होते हैं...धारणी और अकोट से लगभग 40 और 50 किलोमीटर की दूरी पर तलई गाँव हैं। जिसे हमलोगों ने अपने सामने दुनियाँ के नक्शे से मिटते देखा। वहीं पर वन विभाग का एक बड़ा दफ्तर बनाया जा रहा है। तो क्या इस दफ्तर की बिल्डिंग से और वहाँ आने जाने वाली गाड़ियों से टाइगर प्रभावित नहीं होंगे?
पिछले दिनों कान्हा टाइगर रिजर्व में जाने और समझने का मौका मिला। वहाँ टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में एक बड़ी कैंटीन गेस्ट हाउस और शॉपिंग सेंटर इजात किया गया। आखिर यह सारी सुविधाएँ किस के लिए टाइगर या किसी और वन्य जीव के लिए तो नहीं होंगी? सवाल बहुत हैं पर उनके जवाब विस्थापन से विकास लाने वालों के पास नहीं...

#मेलघाट...

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