Tuesday 29 May 2018

मेलघाट के अभागे बच्चे...

पक्षी भी अंजान पेड़ों पर अपना घोसला नहीं बनाते हैं। उन्हें भी मालूम होता है कहाँ अपना आशियाना बनाना है और कहाँ नहीं। लेकिन इंसानों के साथ ऐसा कई बार संभव नहीं होता है। उन्हीं मे से शायद ये अभागे बच्चे होंगे। जिन्हें नहीं पता की उनका भविष्य क्या होगा? टाइगर रिजर्व के नाम पर ऐसे हजारों बच्चों का भविष्य भी अंधकार में जाने वाला है। उन्हें अपने ही जल, जंगल, जमीन से अलग करने की साजिश रची जा रही है। अपनी संस्कृति अपने ज्ञान से बंचीत करने की साजिश। 

यह साजिश आज से नहीं शुरू हुई बल्कि जब मेलघाट को 1973 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। तभी से यह शुरू हो गया। जो आज तक निरंतर बना हुआ है। हर माँ-बाप अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देना चाहता है, उसी की उम्मीद में दिन-रात एक करता है अपना पेट काट कर उनका पेट भरने की कोशिश करता है। पर जब माँ-बाप के पास ही उनका कुछ न बचे तो वह बच्चों का भविष्य क्या बनाएँगे ? ऐसे बहुत से अनुत्तरित सवालों से घिरा है मेलघाट का कोरकू आदिवासी समाज जो अपने ही अस्तितव की लड़ाई लगातार लड़ रहा है... 
#मेलघाट...


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