Thursday 26 April 2018

भिखारीनामा नाटक: एक नई रंगभाषा


हिंदी विश्वविद्यालय के प्रदर्शनकारी कला विभाग द्वारा भिखारी ठाकुर रंगमंडल की नाट्य प्रस्तुति ‘भिखारीनामा’ का आयोजन ग़ालिब सभागार में किया गया। भिखारीनामा नाटक बिहार के महान लोक नाट्य प्रयोक्ता भिखारी ठाकुर के जीवन एवं रंगमंच पर आधारित एक संगीतमय प्रस्तुति है। इस नाटक का लेखन, निर्देशकन एवं अभिनय देश के जाने माने रंगकर्मी जैनेन्द्र दोस्त ने किया। जैनेन्द्र दोस्त प्रदर्शनकारी कला विभाग में अध्यापक हैं। खचाखच भरे हॉल में ऐसी अनुभूति हो रही थी कि दर्शक महाराष्ट्र में नहीं बल्कि बिहार के भोजपुरिया क्षेत्र में बैठ कर नाच देख रहे हों। जैनेन्द्र दोस्त ने अपने एकल अभिनय के द्वारा दर्शकों को लगभग डेढ़ घंटे तक बांधे रखा। भिखारीनामा नाटक में भिखारी ठाकुर के नाच के गीत, संगीत, नृत्य, वस्त्र, मेकअप, वाद्य यंत्र एवं उनके नाटकों के अंश को एक मनोरंजन क्रम में दिखाया गया है। भिखारी ठाकुर के जन्म से लेकर उनके नाच पार्टी बनाने तक एवं बिदेसिया नाटक  रचने तक की कहानी को इस नाटक के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। नाटक में जोकर बन कर अभिनेता ने दहेज पर जीएसटी लगने की बात कह कर दर्शकों को खूब गुदगुदाया। नाटक में जाति व्यवस्था पर भी करारा प्रहार किया गया है। इतना ही नहीं विस्थापन की समस्या को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। भिखारीनामा नाटक की यह चौथी प्रस्तुति है। इसके पहले इस नाटक की प्रस्तुति बिहार एवं दिल्ली  के नाट्य महोत्सवों की जा चुकी है।






नाटक के निर्देशक जैनेंद्र दोस्त जेएनयू (दिल्ली) के आर्ट एंड एस्थैटिक्स विभाग में पीएचडी शोधार्थी हैं। जैनेंद्र ने अब तक 20 से अधिक नाटकों का सफल निर्देशन एवं मंचन किया है। इनके द्वारा निर्देशित नाटकगर्भनादपाकिस्तान के लाहौर एवं कराची में प्रस्तुत एवं सम्मानित किया जा चुका है। इन्होने श्रीलंका एवं भूटान के रंगमहोत्सव में भी अपना सफल प्रदर्शन किया है। जैनेंद्र दोस्त बिहार के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर रंगमंच को पुनर्जीवित एवं संस्थानीकृत करने के अथक प्रयास में सक्रिय हैं। आप के रंगमंचीय योगदान को देखते हुये आप को भिखारी ठाकुर रंगसम्मान 2017 के नवाजा जा चुका है।
नाटक के समापन पर प्रदर्शनकारी कला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ ओमप्रकाश भारती ने निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त को सम्मानित करते हुए कहा कि भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता आज भी बरक़रार है। आज भिखारी ठाकुर जीवित होते तो देश में हो रहे अनेक घटनाओं पर अवश्य ही नाटक लिखते एवं करते। नाटक में संगीत संयोजन सरिता साज़ का था वहीं संगतकार थे गौरीशंकर, सुनील राव, बृजनाथ, अश्विनी रोकड़े एवं जीवन थे। मंच निर्माण रमलखन, प्रकाश विन्यास शिव कुमार एवं धर्मराज, मेकअप अंकित चौधरी, वस्त्र पुनेश एवं आकाश कांबले, प्रस्तुति व्यवस्था डिसेंट साहू, मुकेश कुमार, चैताली, आकाश बेगु तथा फ़ोटो डॉक्यूमेंटेशन नरेश गौतम ने किया था। दर्शकों में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, छात्र, शोधार्थी कर्मचारी के अलावा विश्वविद्यालय के बाहर से भी लोग आए थे।






क्या ख़ास है इस नाटक में
इस नाटक के निर्देशक जैनेन्द्र दोस्त से बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि भिखारीनामा कई सालों के शोध कार्यों के बाद बना है। शोध कार्य न सिर्फ़ स्क्रिप्ट के स्तर पर हुआ है बल्कि एक नई रंगभाषा के सृजन का भी प्रयास इस नाटक में दिखा है। कई बार नाटक गाथा गायन की शैली में अभिनय की प्रचुरता की तरफ़ बढ़ता है तो कई बार एकल अभिनय के पुराने मानदंडों से अलग अभिनेता गीत-संगीत-नृत्य के साथ दर्शकों को अपने साथ कुछ दूर ले जा कर छोड़ देता है। नाटक में किसी भी जगह पर अभिनेता नाटकीय भाव और गति को कम एवं ज़्यादा कर सकने लिए स्वतंत्र है। अभिनेता मंच पर ही जब वस्त्र एवं वेश बदल कर विभिन्न भूमिकाओं में आता है तो वस्त्र और रूप बदलने की प्रक्रिया भी बृहद स्तर पर दर्शकों को नाटक से जोड़ती है। इस फ़ॉर्मेट में अभिनेता न सिर्फ़ इम्प्रोवाईजेशन के लिए खुब छूट लेता है बल्कि मुख्य कहानी से अलग हट नाटकीय रोचकता पैदा कर फिर मुख्य कहानी पर लौट आता है। इस नाटक में पूर्वी, निर्गुण, दोहा, चौबोला सहित विभिन्न लोकगीतों को नाटकीय क्रम में शामिल किया गया है।







भिखारी ठाकुर के बारे में
जन्म: 18 दिसंबर 1887    मृत्यु: 10 जुलाई 1971
भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर बीसवीं शताब्दी के महान लोक नाटककारों-कलाकारों में से एक रहे हैं। सन 1917 में अपने नाच-नाटक दल की स्थापना कर भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी भाषा में बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी-बेचवा, भाई-बिरोध, पिया निसइल, गंगा-स्नान, नाई-बाहर, नकल भांड आ नेटुआ सहित लगभग दर्जन भर नाटक एवं सैकड़ों गीतों की रचना की है। उन्होने अपने नाटकों और गीत-नृत्यों के माध्यम से तत्कालीन भोजपुरी समाज की समस्याओं और कुरीतियों को सहज तरीके से नाच के मंच पर प्रस्तुत करने का काम किया था। उनके नाटक आज भी प्रासंगिक हैं।





रिपोर्ट तथा फोटो डॉकयुमेंटेशन : नरेश गौतम (पीएच.डी. शोधार्थी), म.गां.अं.हिं.वि., वर्धा  
      
        

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