Saturday 30 May 2020

शिक्षा के बदलते तरीके - ऑनलाइन सीखने का अनुभव


आज पूरा विश्व एक ऐसे समय से गुजर रहा है, जिसके खत्म होने की कोई उम्मीद अभी नजर आती दिखाई नहीं दे रही है। विश्वभर में कोरोना माहमारी का संकट छाया हुआ है। सारी व्यवस्थाएं अस्त-व्यस्त हो गयी हैं। हर जगह त्राहि-त्राहि मची हुई है। उन्हीं में एक मसला बच्चों की पढ़ाई का भी बना हुआ है। 21वीं शताब्दी यानी आज के समय में, आज बिना क्लास छोड़े आप अपनी सुविधानुसार कहीं भी, कभी भी ऑनलाइन सीख सकते हैं। यह आपके सीखने की प्रक्रिया को और आसान बनाता है। आप अपना समय बचा सकते हैं और आपको कहीं जाने की भी जरूरत भी नहीं है। घर बैठे-बैठे अनेक तरह की जानकारियां सिर्फ मिनटों में हासिल कर सकते हैं। वर्क फ्रॉम होम कर सकते हैं। शारीरिक रूप से कक्षाओं में भाग लेने के लिए शिक्षार्थी किसी विशेष दिन/समय के अधीन होते हैं। लेकिन ऑनलाइन कक्षाओं में यह जरूरी नहीं। वे अपनी सुविधानुसार शिक्षा सत्रों को कुछ देर के लिए रोक भी सकते हैं। ऑनलाइन कक्षाएं एक सरल और सुगम उपाय हो सकती हैं। बिना किसी परेशानी के कुछ सीखने का किंतु यह सब कुछ आसान सा लगने वाला इतना आसान भी नहीं है। भारत जैसे-तमाम देश इस समय कोरोना के चलते पूर्णतया बन्द हैं। जिससे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। जिसमें छात्रों की पढ़ाई भी प्रभावित हुई है। छात्रों की पढ़ाई का नुकसान न हो इसलिए ऑनलाइन कक्षाओं का एक विकल्प सामने आया है। किन्तु यह भारत में कितना कारगर साबित होगा यह जानना भी जरूरी है। इन कुछ आँकड़ों पर यदि ध्यान दिया जाये तो हकीकत के बहुत से पहलू सामने दिखाई देते हैं। ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, 80% लोग प्रति माह रु. 10,000 से कम कमाते हैं। यानी, यदि कोई इससे ज्यादा कमाता है तो वह देश के टॉप 20% में आएगा। विश्व बैंक के वर्ल्ड डेवलपमेंट इंडिकेटर्स के अनुसार 76% लोग असुरक्षित रोज़गार में लगे हुए थे। वहीं ग्लोबल फाइनैंशियल इंक्लूजन इंडेक्स 2017 के अनुसार, देश में केवल 17% के पास स्मार्टफोन हैं। अन्य कुछ अध्यानों के अनुसार देश की लगभग एक तिहाई जनसंख्या के पास स्मार्टफोन हैं। यह आँकड़े यदि ठीक मान भी लिए जाये तो और बहुत से पेंज हैं।  

साथियों जब आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे तो शायद आप किसी वातानुकूलित कक्ष में अपनी कुर्सी पर बैठे होगे, जहां इंटरनेट उपलब्ध हो और किसी भी तरह की कोई समस्या ना हो। हालाँकि जब मैं यह लिख रहा हूँ तो मुझे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। मै अभी अपने गांव में हूँ। यहाँ बिजली की भयानक समस्या है। इंटरनेट की सुविधा भी बड़ी मुश्किल से मिल पाती है। गांव में इंटरनेट बमुश्किल चलता है। यहाँ तक की गांव में मोबाइल नेटवर्क की समस्या आज भी वैसे ही कायम है जैसे- कि पिछले कुछ वर्षों पहले थी। यह सिर्फ मेरी समस्या नहीं है। देश के ऐसे तमाम हिस्से हैं जहाँ आज भी मोबाइल में नेटवर्क खोजने के लिए तमाम तरह के जुगाड़ करने पड़ते हैं। वहाँ ऑनलाइन क्लासेस के बारे में मेरे लिए सोचना भी कई बार चाँद पर घर बनाने जैसे ही दिखाई देता हैं।     
मेरे घर में मेरे अलावा और भाई-बहन भी हैं। सभी की ऑनलाइन कक्षाएं विद्यालयों द्वारा चलवायी जा रही हैं। ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया’ के आँकड़ों की देखों तो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल से एक घर में एक स्मार्ट फोन होगा। यदि घर में चार बच्चे हैं और चारों पढ़ रहे हैं तो सोचिए वह कैसे ऑनलाइन पढ़ाई में अपनी हिस्सेदारी कर सकते हैं? दूसरी गौर करने वाली बात यह भी है कि जिन घरों में लड़कियाँ हैं उनके लिए ऑनलाइन पढ़ाई करना अपने आप एक जटिल प्रक्रिया के तौर पर सामने आ रहा है।  

जैसा कि मैंने बताया की मैं इस वक्त गाँव में हूँ।  यहां घरेलू काम करने के लिए सिर्फ लड़कियों को ही कहा जाता है। खाना बनाना, बर्तन धोना इत्यादि तमाम तरह के काम सिर्फ और सिर्फ लड़कियों से ही कराये जाते हैं। ऑनलाइन कक्षाओं के समय भी उन्हें घर के काम करने होते हैं। उनके लिए इस तरह से पढ़ाई करना कोई विकल्प नजर नहीं आता। घर के कामों में मैं मदद करता हूँ लेकिन यह कोई कारगर तरीका नहीं है। घर के कामों से अगर वह पढ़ाई के लिए समय निकाल भी लेती हैं तो फिर वही समस्याएं उन्हें घेरे खड़ी होती हैं जो मेरे साथ हैं। मैंने अपनी महिला मित्रों से जब ऑनलाइन सीखने के बारे में सवाल किया तो उनमें से कई ने कहा कि- "जब कक्षा शुरू होती है तो मोबाइल लेकर बैठ जाती हूँ। कुछ समय बाद घर का कोई भी काम हुआ तो कक्षा को बीच में ही छोड़ना पड़ता है।" एक महिला मित्र ने बताया कि- "घर बहुत छोटा है। परिवार के सभी सदस्य एक ही कमरे में रहते हैं। इन सब के बीच ऑनलाइन कक्षा हो पाना सम्भव नहीं होता है।"

इसी तरह की तमाम समस्याएं विद्यार्थियों को हो रही हैं। लड़कियों की पढ़ाई के रास्ते में कितनी कितनी बाधाएं हैं, इसका अंदाज़ा आप इन सभी समस्याओं से लगा सकते हैं। कॉलेज आने के लिए बाहर निकलना उनके लिए कितने कामों का प्रबंधन करके निकलना है। घर लौटकर उसी बचे समय में उन्हें घर की सब जिम्मेदारियां पूरी करनी होती हैं, पढ़ाई भी करनी होती है, असाइनमेंट भी बनाना होता है। कितनी लड़कियां दो लेक्चर के बीच गैप में यह काम करती हैं कि घर में समय नहीं मिलेगा। और वैसे भी, कॉलेज के लिए घर से बाहर निकलना साँस लेने जैसा नहीं क्या? और अब जब वे घर में हैं, तो कितने परिवार उनकी ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर संजीदा और संवेदनशील हैं? उनकी आर्थिक स्थिति और पारिवारिक परिवेश उन्हें इस तरह की पढ़ाई की कितनी सहूलियत देते हैं? इस तरह के प्रश्न भी सबके मन में इस विकल्प पर संदेह पैदा करते हैं।

इससे अलग एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिए ऑनलाइन लर्निंग कितना उपयोगी साबित होता है? पुस्तकें ब्रेल लिपि में उपलब्ध हो सकती हैं। टोकिंग सॉफ्टवेयर भी हैं लेकिन सब के इंटरनेट सबसे अहेम हैं। बावजूद इसके ऑनलाइन सीखना केवल तभी मुमकिन है जब कोई अन्य व्यक्ति उस दृष्टिबाधित व्यक्ति की मदद करे।

हर विद्यार्थी अलग-अलग पृष्ठभूमि से आता है। किसी के पास शिक्षा ग्रहण करने के पर्याप्त साधन मौजूद हैं तो बहुत से विद्यार्थियों के लिए शिक्षा ग्रहण करने हेतु विश्वविद्यालयों में दाखिला लेना भी मुश्किल होता है। ऑनलाइन सीखना एक अच्छा विकल्प हो सकता है लेकिन सिर्फ उन्हीं के लिए जिनके पास पर्याप्त साधन मौजूद हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी यह बात सोचना अपने आप में बड़ी बात होगी। हम क्यों न तकनीक के मामले में कितने ही दावे कर लें लेकिन भारत देश का ग्रामीण अभी इस तरह की व्यवस्था के लिए कतई तैयार नहीं है। भारत के तमाम ऐसे हिस्से हैं जहाँ फोन पर बात करने के लिए गाँव घर की सबसे ऊँची जगह पर जाना पड़ता है। उस स्थिति में भी अगर ठीक से बात हो जाए तो बहुत बड़ी बात होती है। लेकिन हमारी सरकार और पूरे सरकारी तंत्र ने यह मान लिया है कि भारत का हर व्यक्ति और बच्चा तकनीकी तौर पर तैयार है। जबकि हकीकत कुछ और ही कहती है।

आशीष गौतम 

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