Monday 12 November 2018

आजादी के 70 साल बाद भी भाजपा-कांग्रेस के राज में दुर्ग शहर बना नरक

आजादी के 70 साल बाद भी भाजपा-कांग्रेस के राज में दुर्ग शहर नरक बना हुआ है। हमारे पास न गाड़ी है न बंगला है। बस ईमानदारी है, जनता की सेवा करने का संकल्प है।' यह कहना है छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहरी विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरी किन्नर उम्मीदवार कंचन शेन्द्रे का। वे निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी हैं और पिछले एक दशक से थर्ड जेंडर के प्रश्नों पर संघर्षशील, गरीबों-दलितों व नागरिक अधिकारों की आवाज बुलन्द कर रही हैं। वे छत्तीसगढ़ ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड की सदस्य भी रही हैं। बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा देकर वे चुनाव मैदान में उतरी हैं। बताते चलें कि पिछले कई दशकों से इस सीट पर बारी-बारी से कांग्रेस-बीजेपी के लोग चुनाव जीतते रहे हैं।
कंचन बताती हैं कि कांग्रेस-बीजेपी दोनों ने यहां की जनता से गद्दारी की है। वे शहर और जिले की बदहाली को बयां करते हुए कहती हैं कि पिछले दिनों दुर्ग जिले में 40 लोगों की डेंगू से मौत हो गई। जबकि यहां भाजपा के सांसद और मेयर और कांग्रेस के विधायक रहे हैं। इन जनप्रतिनिधियों को जनता की तनिक भी फिक्र नहीं है। पूरे शहर में गंदगी पसरी हुई है। कंचन कहती हैं कि ये स्थापित नेता जनता के बीच पूरी तरह से बेनकाब हो गए हैं। इनपर भरोसा करने का अर्थ क्षेत्र को गर्त में धकेलने के समान है। चुनाव में जनता के पास मौका है कि वे इन्हें सबक सिखा सकते हैं और अच्छे जनप्रतिनिधि का चयन कर सकते हैं।
उनके चुनाव मैदान में आने से कांग्रेस-भाजपा के दिग्गजों के पसीने छूट रहे हैं। शोर-शराबे से दूर उनका चुनाव प्रचार का अंदाज काफी निराला है। शासकवर्गीय पार्टियां जहां जनता के बुनियादी सवालों पर पर्दापोशी करती हैं और मुद्दों को भटकाती हैं, वहीं कंचन आम जनता के जीवन-जीविका से जुड़ी समस्यों पर मतदाताओं को गोलबंद करने की जद्दोजहद चला रही हैं। उनका चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन छाप है। इसी चुनाव चिन्ह पर मतदाताओं से वोट देकर जन अधिकारों के संघर्ष को आगे बढ़ाने की वे अपील कर रही हैं। 
उनके और उनके साथ इस चुनावी मुहिम में जुटे सभी साथियों के जज्बे को सैल्युट!

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