उम्र-ए-दराज
मांग के लाई थी चार दिन
दो आरजू में कट गए, दो इंतज़ार में ........
ज़िंदगी और ज़िंदगी
की यादगार
और पर्दे पे
कुछ परछाइयाँ ……..
साधो, ये मुर्दों का गाँव .........
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी, हम जैसे हो जाएँगे .....
निदा फ़ाज़ली
इक बगल
में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ .............
ज़ुल्फ़-अँगड़ाई-तबस्सुम-चाँद-आईना-गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया
इनका शबाब
पेट के भूगोल में
उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको
फुरसत है पढ़े दिल की क़िताब
अदम
गोंडवी
इक आस तो है, कोई सहारा नहीं तो क्या..........
थोडी आँच बची रहने दो थोडा धुँआ निकलने दो
तुम देखोगे इसी बहाने कई
मुसाफिर आएँगे ............
दुष्यंत कुमार
कंकरीट के इस जंगल
में फूल खिले पर गंध नहीं
स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है ..........
अदम गोंडवी
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