Sunday 18 November 2018

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में ट्रांसजेंडरों की दस्तक


छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में इस बार आधा दर्जन से अधिक सीटों पर किन्नर उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे हैं। मध्यप्रदेश के इटारसी और शहडोल विधानसभा क्षेत्र से दो किन्नर उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। इसी शहडोल विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 2000 में निर्दलीय चुनाव जीतकर शबनम मौसी ने सबको चौंका दिया था। वहीं छत्तीसगढ़ के विलासपुर, रायगढ़, अंबिकापुर और दुर्ग शहर विधानसभा क्षेत्र से किन्नर उम्मीदवार उतरी हैं। ये सभी निर्दलीय हैं। दुर्ग शहर से 28 वर्षीय कंचन शेन्द्रे नामक किन्नर ने अपनी उम्मीदवारी दी है। उच्च शिक्षा प्राप्त कंचन सोशल वर्क विषय से एमए हैं। वह छत्तीसगढ़ ट्रांसजेंडर वेल्फेयर बोर्ड की मेंबर भी रही हैं। बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा देकर चुनाव मैदान में उतरी हैं। इसके पूर्व एड्स जागरूकता अभियान और मतदाता जागरूकता अभियान में भी वह बढ़-चढ़कर भूमिका अदा कर चुकी है।
किन्नरों को अब तक नाचते-गाते, अलग अंदाज़ में तालियाँ बजाते और मांगते हुए ही ज़्यादातर लोगों ने देखा है। समाज में आज भी उनके साथ इंसानियत का व्यवहार नहीं किया जाता है। ज़्यादातर उन्हें हास्य-व्यंग्य और उपहास की नजरों से ही देखा जाता है। ऐसी स्थिति में किन्नरों का चुनाव मैदान में उतरना अपने आपमें अत्यंत ही साहसिक कदम है। कंचन शेन्द्रे की उम्मीदवारी को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। उनके चुनाव प्रचार के तौर-तरीकों और उस पर समाज की प्रतिक्रिया को समझने के लिए हमने एक पूरा दिन उनके चुनाव प्रचार में बिताया। उसी को संक्षेप में नीचे व्यक्त करने का प्रयास किया गया है- 

 चुनाव हेतु पर्चा दाखिल करते वक्त ही कंचन ने किन्नरों के लिए बड़ी राजनीतिक जद्दोजहद शुरू कर दी थी। कंचन बताती हैं कि नामांकन फॉर्म में इस चुनाव में भी महिला और पुरुष का ही कॉलम है। थर्ड जेंडर के लिए कोई स्वतंत्र कॉलम नहीं है। किन्तु मैं अपनी ट्रांसजेंडर पहचान के साथ ही चुनाव लड़ना चाहती थी, मैंने चुनाव आयोग से इस आशय का अनुरोध किया। चुनाव आयोग ने हमारी इस मांग को स्वीकार करते हुए मुझे अपनी पहचान के साथ न केवल नामांकन पर्चा दाखिल करने की ही अनुमति दी बल्कि यह भी आश्वासन दिया कि आगामी चुनाव के नामांकन फॉर्म में तीसरे लिंग के लिए भी कॉलम रहेगा। कंचन बताती हैं कि यह ट्रांसजेंडर के लिए अहम राजनीतिक जीत है।  

मेरी भी उमर तुम्हें लग जाए! किसी नेता के मुंह से मतदाताओं के लिए ऐसी कामना करते हुए शायद ही किसी ने सुना होगा। दुर्ग शहरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर चुनाव मैदान में उतरी किन्नर उम्मीदवार कंचन शेन्द्रे को अपने चुनाव प्रचार के दरम्यान मतदाताओं से मिलते हुए यह दुआ करते हुए सहज ही देखा जा सकता है। दुआओं में किसी का यकीन हो अथवा नहीं, किन्तु दूसरों के प्रति खुद को कुर्बान कर देने की भावना की अभिव्यक्ति के बतौर इसे देखा-समझा जा सकता है। पतनशील राजनीति के मौजूदा दौर में इस किन्नर प्रत्याशी में आम जनता के प्रति इस किस्म की भावना का होना ही अपने आपमें काफी महत्वपूर्ण और दिल को छू लेने वाला है। यह बात उसे अन्य सभी स्त्री-पुरुष उम्मीदवारों से अलग करती है।
चुनाव आयोग द्वारा राज्य में दो चरणों में मतदान कराया जा रहा है। पहला चरण का मतदान 12 नवंबर को ख़त्म हो चुका है। जबकि दूसरे चरण का मतदान 20 नवम्बर को होना है। दुर्ग जिले के इस शहरी विधानसभा क्षेत्र में दूसरे चरण में मतदान होना है। परंपरागत तौर पर दुर्ग का क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है। किसी जमाने में कांग्रेस के कद्दावर नेता मोतीलाल वोरा यहाँ से प्रतिनिधित्व करते थे। यहाँ तक कि आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में जहाँ इंदिरा गांधी तक अपनी सीट नहीं बचा पाई थी और चुनाव हार गई थीं। वहीं उस चुनाव में भी मोतीलाल वोरा चुनाव जीतने में सफल रहे थे। वे दो बार अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रह चुके हैं। उनके पुत्र अरुण वोरा तीसरी बार यहाँ से विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी उन्हें ही जीत हासिल हुई थी। हालांकि उन्हें भाजपा ने लगभग डेढ़ दशक तक तीन विधानसभा चुनाव में काफी करीबी चुनावी संघर्ष में मात दी थी। आजादी के बाद से लेकर पिछले चुनाव तक कांग्रेस ही यहाँ से चुनाव जीतती आ रही थी। कांग्रेस की इस जीत का सिलसिला 1998 में टूटा था और अरुण वोरा भाजपा के उम्मीदवार से चुनाव हार गए थे। वर्ष 2013 में कांग्रेस के अरुण वोरा ही एक बार फिर भाजपा को शिकस्त देने में कामयाब हुए। इस बार भी कांग्रेस के सिटिंग उम्मीदवार अरुण वोरा हैं जबकि भाजपा ने दुर्ग शहर की महिला मेयर को अपना प्रतयाशी बनाया है। कांग्रेस और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला बताया जा रहा है। वैसे भी इस सीट पर पिछले कई चुनावों में जीत-हार काफी कम मतों के अंतर से होता रहा है। इस मायने में यह सीट इन दोनों दलों के लिए राजनैतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी ने भी यहाँ से अपना प्रतयाशी उतारा है। कंचन शेन्द्रे की उम्मीदवारी ने इस चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है। कंचन बताती हैं कि भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के लोग उनसे समर्थन मांगने आए थे, किन्तु हमने साफ इंकार कर दिया।

कंचन अत्यंत ही मर्मस्पर्शी शब्दों में किन्नरों की पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए उसे अपना पॉलिटिकल स्टैंड बना देती है- हमारा न कोई बाप न भाई न औलाद है, हमको जिताओ हम तुम्हारा दुःख-तकलीफ दूर करेंगे! किन्नरों के समुचित विकास के लिए उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व को कंचन जरूरी बताती हैं। वह कहती हैं कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की ही तर्ज पर किन्नरों के लिए भी राज्यों के विधानसभाओं तथा लोकसभा में कुछ सीटें आरक्षित होनी चाहिए। वे अफसोस व्यक्त करते हुए कहती हैं कि महिलाओं के आरक्षण की बात होती है किन्तु किन्नरों की कोई बात नहीं करता है। मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के चुनावी घोषणा-पत्र में भी किन्नरों के लिए कुछ भी नहीं है। इससे साफ जाहिर होता है कि समाज में वर्षों से उपेक्षा का शिकार हो रहे किन्नरों की उन्नति उनकी प्राथमिकता में नहीं है।
आज जहां चुनाव प्रचार में ज़्यादातर नेताओं के काफिले चमकती गाड़ियों और किराए के लोगों के सहारे ही चलते हैं। इससे अलग हटकर कंचन के चुनाव प्रचार अभियान में एक दर्जन से अधिक किन्नर शामिल रहते हैं। चार-पाँच के करीब पुरुष और तीन-चार युवतियां व महिलाएँ भी शामिल थीं। कंचन के चुनाव प्रचार में शामिल चंचल किन्नर काफी मुखर होकर मतदाताओं से बात करती हैं। दुर्ग शहरी विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले अब तक के नेताओं के बारे में कहती हैं कि- यहाँ नेता नहीं, बेटा है। उनका इशारा मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा की तरफ है। दुर्ग शहर के गंजपाड़ा उत्कल कॉलोनी के 39 वर्षीय नागरिक संतोष सागर तल्खी के साथ कहते हैं कि आज के नेता जनता का खून पी रहे हैं। उसी कॉलोनी की 30 वर्षीय युवती तुलसी सोनी बीच में ही बोल उठती है कि- कांग्रेस को इत्ते वर्षों से जिताया, मोदी को जिताया। हमारे लिए इन सबने अब तक क्या किया! इसलिए हमने इस बार नए चेहरे को समर्थन देना तय किया है। निर्दलीय उम्मीदवार कंचन शेन्द्रे को वह इस बार के विधानसभा चुनाव का सबसे योग्य प्रत्याशी मानती हैं। संतोष भी कहते हैं कि कंचन जैसी जमीनी और जनसाधारण की पीड़ा को समझने वाली नेता ही इस क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है। पिछले तीन-चार दिन से ये दोनों उनके काफिले के साथ चुनावी प्रचार में भी हिस्सा ले रहे हैं।

जोश व आत्मविश्वास से लबरेज कंचन अपने चुनाव प्रचार हेतु गए मोहल्ले में जमा लोगों से मुखातिब होते हुए कहती हैं कि, चुनाव के वक्त बड़े-बड़े नेता जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं, किन्तु चुनाव जीतते ही सारे वादे भूल जाते हैं। देश में मंहगाई बढ़ती जा रही है, गरीबों का जीना मुहाल होता जा रहा है। गैस सिलिंडर की कीमत आसमान छू रही है। आज देश में अमीर और अमीर होते जा रहे हैं जबकि गरीबों की स्थिति बदहाल बनी हुई है। उनके साथी कार्यकर्ता इस नारे के सहारे कंचन के निर्दलीय उम्मीदवार होने को औचित्य प्रदान करने हेतु बीच-बीच में यह नारा भी उछालते हैं- सारे दलों में दलदल है, सबसे अच्छा निर्दल है! बजरंग नगर उरला दुर्ग मोहल्ले में उनका चुनाव प्रचार काफिला पहुंचा। दो वार्डों वाला यह मोहल्ला काफी बड़ा है। मोहल्ले में अटल आवास योजना के तहत दो-तीन कॉलोनियाँ भी हैं। इन कालोनियों में विभिन्न जातियों के गरीब-आवासविहीन परिवार रहते हैं। एक-एक कमरे वाला घर इन परिवारों को आवंटित किया गया है। इन कालोनियों की हालत अत्यंत ही दयनीय है। जगह-जगह कूड़े-कचरे का अंबार लगा हुआ था, नालियों में गंदगी अटी पड़ी है। नालियों को देखते हुए ऐसा लग रहा था मानो कई महीनों से उसकी सफाई ही नहीं हुई हो। वहाँ रहने वाले ज़्यादातर गरीब लोग दुर्ग में ही मजदूरी और सड़कों के किनारे छोटा-मोटा दुकान लगाकर अपनी आजीविका चलाते हैं। इस मोहल्ले में कंचन के प्रचार काफिले के पहुँचते ही धीरे-धीरे उनका काफिला बढ़ता चला गया। कंचन उनके घरों में अपनेपन के साथ बेधड़क घुस जाती हैं और घर के स्त्री-पुरुषों से वोट देने की अपील करती जाती हैं और अपना चुनाव चिन्ह को याद रखने की बात दोहराती जाती हैं। हर जगह वह यह कहना नहीं भूलती कि- सबको जिताकर देख लिया न, एक बार हमको जिताकर देखो! यहाँ हमको से उसका अभिप्राय किन्नर से है। बीच-बीच में प्रचार काफिले में शामिल किन्नर ऊंची आवाज में यह नारा भी बुलंद करते हैं कि- नर न नारी, किन्नर की बारी! मोहल्ले की एक अधेड़ उम्र की महिला द्रौपदी यादव और इन्द्र कुमार भी उसके काफिले में शामिल हो जाते हैं। ये दोनों भी मोहल्ले के लोगों से यह कहते हैं कि- बड़े-बड़े को जिताकर देखा, एक बार इसे ही वोट देना है।
इसी बात को पचास वर्षीय कलेन्द्री साहू और तिरुमती भी दूसरे शब्दों में लोगों से कहती है कि- कलम और पंजा को अब तक वोट देते रहे पर कुछ बदलाव नहीं आया। इसलिए इस बार कंचन को ही जिताना है। मोहल्ले के लोगों की अनेक शिकायते हैं, किसी का अब तक राशन कार्ड नहीं बना है तो सरकार द्वारा आवंटित किसी के घर  में सात वर्ष बीत जाने के बाद भी खिड़की तक नहीं लगी है। मोहल्ले की नालियों में जाम पड़ी गंदगी की नियमित सफाई नहीं कराए जाने के खिलाफ भी गुस्सा है। इन अति साधारण लोगों में कांग्रेस-बीजेपी दोनों के खिलाफ आक्रोश है। कंचन और उसके साथी किन्नरों को मोहल्ले के लगभग सभी लोग पहचानते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि इन लोगों का इन मोहल्लों में आना-जाना बना रहता है।
कंचन के चुनाव प्रचार का अपना ही अंदाज है, वह विभिन्न उम्र समूह के स्त्री-पुरुषों से उनके उम्र के अनुरूप रिश्ता जोड़ते हुए अत्यंत ही पॉपुलर शैली में प्रचार करती हैं। युवाओं को भाई’, बुजुर्ग पुरुषों को काका तो हम उम्र स्त्रियों को बहिनी, बहन और उम्रदराज स्त्रियों को दाई और अम्मा पुकारते हुए उनसे अत्यंत ही सरल शब्दों में संवाद करती है। जहां चमक-दमक वाले उम्मीदवारों से बात तक करने में गरीब व वंचित तबके के लोग हिचकते हैं, वहीं कंचन से ये लोग बेझिझक अपनी समस्याओं को साझा कर रहे थे। लोगों को अब तक यहाँ से बारी-बारी से चुनाव जीतकर जाने वाले कांग्रेस-बीजेपी के नेताओं से काफी शिकायतें थी।

जीतने पर अच्छा घर बनाकर दूँगी, तुम्हें रोजी-रोजगार दिलाने के लिए प्रयास करूंगी। एक बार किन्नर पर विश्वास करो!’, जो तुम्हारे बीच से रहेगा, वही तुम्हारी फिक्र करेगा। मेरे पास न गाड़ी है और न ही पैसा है। मैं आपसे हाथ जोड़कर अपील करने आई हूँ कि मुझे आप एक बार सेवा करने का मौका दें! लोगों से इस तरह की अपील करते हुए कंचन आगे बढ़ती हैं, उनके साथी किन्नर झुंड बनाकर लोगों से वोट देने की अपील करती जाती हैं। पूरे दिन भर यह सिलसिला चलता रहा। साधारण लिबास और साधारण मेकअप में भी कंचन के चेहरे पर गज़ब का आत्मविश्वास और जुनून दिखता है। तेज कदमों से चलते हुए वह हर किसी से खुद मिलती है। मोहल्ले के छोटे-छोटे बच्चों को भी बीच-बीच में प्यार-दुलार करते जाती हैं। महिलाओं को गले लगाती हैं। लोगों के सिर पर परंपरागत तरीके से हाथ फेरती हैं। लगातार वह सबकी मुरादें पूरी होने की मंगलकामनाएं भी करती जाती हैं। चुनाव प्रचार के दौरान एक ही साथ वह कुशल राजनेता, स्नेहमयी माँ और अत्यंत ही संवेदनशील इंसान का किरदार निभाती हुई दिखती हैं। न कोई जुमला, न कोई बड़बोलापन। एकदम साधारण और सबके दिलों में उतर जाने की कोशिश करती दिखती हैं। सबसे मुसकुराते हुए वह मिलती हैं। उसकी मुस्कान में न तो किसी किस्म की कोई कुटीलता ही दिखाई देती है और न ही धूर्तता। उनकी चमकती आँखों में लोगों के लिए कुछ कर गुजरने के सपने को बखूबी देखा जा सकता है।  

थर्ड जेंडर पर पीएचडी शोध कर रहे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के शोधार्थी डिसेंट कुमार साहू किन्नरों की राजनीतिक यात्रा के बारे में बताते हुए कहते हैं कि- वर्ष 1994 के पूर्व तक किन्नरों को मतदान का अधिकार भी नहीं था। 1994 में स्त्री पहचान के साथ उन्हें मतदान का अधिकार मिला। इसके पूर्व वे पुरुष पहचान के साथ ही मतदान कर सकते थे। वर्ष 2000 में पहली बार शबनम मौसी नामक किन्नर मध्यप्रदेश के शहडौल से विधान सभा चुनाव जीतने में कामयाब रही थी, किन्तु नामांकन के वक्त उन्हें पुरुष कॉलम के तहत फॉर्म भरना पड़ा था। वर्ष 2011 की जनगणना में पहली बार स्त्री और पुरुष कॉलम से इतर एक तीसरा कॉलम अन्य रखा गया। इससे थर्ड जेंडर को स्त्री-पुरुष खांचे से से इतर अन्य के रूप में स्वीकृति का रास्ता खुला। छठे आर्थिक जनगणना वर्ष 2013 में थर्ड जेंडर द्वारा चलाए जाने वाले व्यवसाय की भी गणना हुई। वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन्हें संवैधानिक तौर पर तृतीय लिंग (ट्रांसजेंडर) के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।   

रिपोर्ट : डॉ. मुकेश कुमार एवं चैताली
फोटो क्रेडिट : नरेश गौतम
(छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहर विधानसभा क्षेत्र की निर्दलीय किन्नर प्रत्याशी कंचन शेन्द्रे के चुनाव प्रचार का आँखों देखा हाल। हमारी टीम एक पूरा दिन उनके चुनाव प्रचार काफिले के साथ रही और बीच-बीच में उनसे हमारी बातें भी होती रही। इसी आधार पर यह रिपोर्ट लिखी गई है।) 
टीम में शामिल थे- Dr. Mukesh Kumar, Naresh Gautam, Chaitali S G, Chandan Saroj, Prerit Aruna Mohan, Ravi Chandra, Sultan Mirza, Sudheer Kumar, शिवानी अग्रवाल, Nita Ughade















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